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बात इस हफ्ते जिज्ञासा

अकेलेपन का एहसास
दिनकर बेडेकर

हमेशा की तरह दोस्त से मुलाकात हुई। ऑफिस एक ही है, इसलिए रोज मिलते हैं। ऐसी मुलाकात एक आदत-सी हो गई है। कभी मिल नहीं पाए तो दिन अधूरा लगता है। ऑफिस की कैंटीन में, एक कोने में, आसपास के कोलाहल, रोजमर्रा के चेहरों को भुला कर किसी नए विषय पर बात करना रिफ्रेशिंग लगता है। किताबों में, सिनेमा में उसकी खास रुचि है। इन दोनों विषयों के संबंध में, दुनिया भर में जो भी नया घट रहा है, उसकी जानकारी उसे रहती है। इन सब के बारे में बात करने का उत्साह भी उसके पास है।
लेकिन परसों जब हम मिले तो वह चुप्पी साधे हुए था। अस्वस्थ और बेचैन दिख रहा था। मैंने कुछ पूछने की, बोलने की कोशिश की, दीर्घ विराम के बाद उसकी बेचैनी बाहर आई -
'गॉड... गिव मी अ ब्रेक... छुटकारा चाहिए मुझे... आय वांट टु बी अलोन...'
'क्यों? क्या बात है?'
'खुद के लिए समय ही नहीं बचता आजकल, पूरा समय बच्चे के पीछे लगे रहना पड़ता है। अपने यहाँ घर-गृहस्थी बसाना बडा डिमांडिंग काम है। वेस्टर्न कंट्रीज में, वन कॅन बी अ हाउसहोल्डर एंड स्टिल रिटेन वन'स इंडिविजुआलिटी... अपने यहाँ शादी हो जाए तो दो पैरों की रेस और बच्चा हो जाए तो तीन पैरोंवाली रेस शुरू हो जाती है...'
मुझे उसकी बातों का आशय समझ में आ गया। 'कुछ ही दिनों की बात है, धीरे-धीरे सब एड्जस्टमेंट हो जाती है। बाप बनना हो तो इन अनुभवों से गुजरना ही पड़ता है। हमारे माँ-बाप ने हमें पाल-पोस कर बड़ा किया तब उन्हें भी ये सब झेलना पड़ा होगा...' उसे थोड़ा और उकसाने के लिए मैंने कहा।
               *
उसका पढ़ना, फिल्में देखना, लोगों से मिलना, और सबसे अहम बात यानी अपनी मर्जी का मालिक होना, इस सब पर अचानक कुछ बंधन आ गए थे और, अब बाकी जिंदगी इन जिम्मेदारियों को निभाने में कट जाएगी, अपने लिए समय ही नहीं बचेगा, किताबें, फिल्में, दोस्त - सबसे संपर्क टूटता जाएगा... इस कल्पना से ही वह बेचैन हो गया था।
कुछ ही दिनों में उसे जो चाहिए था वह मौका मिला। दस दिन ही सही, वह अकेला रहनेवाला था। उन दस दिनों में पढ़ने के लिए दो मोटी ऑटोबायोग्राफीज, सुनने के लिए कुछ सीडीज, ऐसा सब इंतजाम भी उसने कर लिया था।
एक दिन, उसने मुझे फोन करके घर बुला लिया। मैं उसके घर गया। थोड़ी देर इधर-उधर की बातें हुईं और फिर वह बेडरूम में जा कर एक बड़ा-सा फोटो अल्बम ले आया। उसके बच्चे के फोटो। किसी का निजी फोटो अल्बम देखने में मुझे संकोच होता है। लेकिन यहाँ हर एक फोटो दिखा कर उसके डीटेल्स भी बताए जा रहे थे। जैसे ही अल्बम पूरा हुआ, मैंने किताबें उठाईं और निकलने के लिए उठ खड़ा हुआ।
'मैंने खास फोन कर के तुम्हें बुला लिया और फोटो अल्बम दिखाता रहा, सच कहूँ तो मुझे अकेलापन बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मै अकेला नहीं हूँ - खास मेरा अपना कोई है, ये बात किसी को विस्तार से बता कर मैं खुद को आश्वस्त करना चाहता था। पहले तीन-चार दिन खूब पढ़ा, लेकिन बाद में अचानक मन उचट गया। पिछले दो दिन तो मैंने यहाँ - इस कुर्सी पर बैठ कर निकाले - जिस सन्नाटे को मैं हमेशा चाहता था अब उसी ने जैसे मुझे घेर लिया था। कुर्सी से उठने में भी डर लगने लगा...'
अकेलेपन और एकांत में रहने का शौक पूरा हुआ दिख रहा था।
        *
वह बदल रहा था। लेकिन पूरी तरह नहीं, कुछ दिनों बाद फिर से अकेलेपन की तलब आएगी, मैं जानता था। तब उसे बताने के लिए मैंने एक छोटी-सी घटना चुन रखी है।
मैं एक दुकान के सामने फुटपाथ पर खड़ा सिगरेट पी रहा था। अचानक एक फैमिली, स्कूटर से आ कर रुकी। बच्चे को बाप के साथ दुकान में जाना था। बाप मना कर रहा था, माँ रोकने की कोशिश कर रही थी। बच्चा जिद कर रहा था, रो रहा था। उनसे थोड़ी दूर एक महिला खड़ी थी। उससे रहा नहीं गया, वह उनके पास आई और बोली - 'बच्चा है, उसे दुकान में ले जाइए - बड़ा हो जाएगा तब आप मिन्नतें करोगे फिर भी आप के साथ नहीं आएगा। मेरे दो बच्चे हैं, मुझसे दूर रहते हैं, जब वे छोटे थे - मेरे पास उनके लिए समय नहीं था, अब उनके पास मेरे लिए समय नहीं है...'
बाप बच्चे को साथ ले गया।
कोई भी - जिसमें मैं भी शामिल हूँ, लोगों से दूर जाने की बात करने लगे तो मुझे वह घटना याद आती है और मैं आसपास की भीड़ में खो जाने की कोशिश करता हूँ।

नामवर सिंह के गीत



पारदर्शी नील जल में
पारदर्शी  नील   जल  में  सिहरते  शैवाल
चाँद था, हम थे, हिला तुमने दिया भर ताल
क्या पता था, किंतु, प्यासे  को मिलेंगे आज
दूर  ओंठों  से,  दृगों  में संपुटित  दो नाल

                                   शायद ही कोई लेखक हो जिस ने लिखने की शुरुआत गीत या कविता से न की हो। कविता वह गोमुख है जहाँ से साहित्यिक संवेदना की सभी धाराएँ फूटती हैं। नामवर सिंह अब गीत या कविता नहीं लिखते - क्या पता, लिखते हों और कहीं छुपा देते हों। लेकिन उन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा को एक तरफ करके गद्य विधाओं को अपनी मेधा समर्पित न कर दी होती, तो उनका शुमार हिंदी के अच्छे कवियों में होता। भारत यायावर ने नामवर सिंह की 'प्रारंभिक रचनाएँ' संकलित कर उन की प्रतिभा के कई ऐसे आयामों का संधान किया है, जिन से हिंदी जगत परिचित नहीं है। इस बार पेश हैं उनके कुछ गीत, जो बताते हैं कि तत्कालीन काव्य समय से प्रभावित होने के बावजूद नामवर जी अपनी अलग जमीन बना रहे थे।

जगदीशचंद्र माथुर
एकांकी
रीढ़ की हड्डी

कहानियाँ
उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ : डाची
विष्णु प्रभाकर : रहमान का बेटा
कबीर संजय : पत्थर के फूल
सविता पाठक : नीम के आँसू

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
निबंध
वृद्धावस्था

संजय कुंदन की कविताएँ

अलिफ लैला
नूरुद्दीन और पारस देश की दासी की कहानी
ईरानी बादशाह बद्र और शमंदाल की शहजादी की कहानी
गनीम और फितना की कहानी
शहजादा जैनुस्सनम और जिन्नों के बादशाह की कहानी

पिछले हफ्ते

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के पत्र

बनारसी दास चतुर्वेदी को : लगता है, संघर्ष करते अब टूट रहा हूँ। आप तो जानते ही हैं कि एक बेटी और पाँच भतीजियों के ब्‍याह रचवाने का काम पूरा कर चुका हूँ। केवल अपनी बेटी के ब्‍याह में छोटे भाई ने पाँच हजार रुपये की मदद की। बाकी सारा खर्च और लड़का मुझे ही जुटाना पड़ा। और अक्‍सर ऐसे दामाद मिले जो असन्‍तोष पालते रहे हैं। भाइयों ने बीस वर्ष पहले ही बाँट कर अलग कर दिया और अलग हो जाने पर भी उनके बेटों और बेटियों का सारा बोझ माथे पर उठाये चल रहा हूँ। यह भी विचित्र अभिशाप है। मैंने भाइयों को इतना निश्चिंत रखा कि वे काहिल हो गये। बड़े तो मेरे हिस्‍से का खेत पा जाने पर भी दयनीय हैं और मर-खप कर कुछ न कुछ मदद अब भी करनी पड़ती है। परिवार बड़ा भारी शोषक होता है। उसके शोषण से वही बच सकता है जो वैज्ञानिक समाजवाद में विश्‍वास करे। मुझ जैसे मानवतावादी लोग तो उस शोषण के जाल से निकल नहीं सकते न यही कह सकते हैं कि हमने त्‍याग किया है।

और जरा सोचिये कि मेरी एक बेटी अब भी क्‍वाँरी है और एक बेटी बड़े भाई की भी है जिसे ब्‍याह में देना है। पोतियों का जिम्‍मा तो खैर मेरे लड़के का होगा। भगवान उसे सकुशल रखें। मेरा स्‍वास्‍थ्य लड़खड़ा रहा है। अब मेरा एक मात्र भरोसा मेरा पुत्र है जो सारा बोझ उठाये हुए है।

कहानियाँ
जैनेंद्र कुमार : तत्सत्
चंद्रगुप्त विद्यालंकार : हूक

पंकज मित्र
क्विजमास्टर
जिद्दी रेडियो

निबंध
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ : मारेसि मोहिं कुठाँव

आलोचना​
उमेश चौहान : रघुवीर सहाय की रचना-धर्मिता

पुष्पिता अवस्थी की प्रेम कविताएँ

व्यंग्य
शरद तैलंग : अपनी किताब अपने ही पास रखें

अलिफ लैला
नाई के चौथे भाई काने अलकूज की कहानी
नाई के पाँचवें भाई अलनसचर की कहानी
नाई के छठे भाई कबक की कहानी जिसके होंठ खरगोश की तरह के थे
अबुल हसन और हारूँ रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहर की कहानी
कमरुज्जमाँ और बदौरा की कहानी

प्रश्नोत्तर - 3
मुकुल

'हिंदी नई चाल में ढली' - यह वाक्य किस का है?
भारतेंदु हरिश्चंद्र का। उन्होंने अपनी पुस्तक 'कालचक्र' में लिखा कि हिंदी नई चाल में ढली सन 1873 में। भारतेंदु के समय में हिंदी को एक नया व्यक्तित्व मिला जिसे व्यापक जनता ने स्वीकार किया। यह सरल-सुबोध खड़ीबोली हिंदी थी जिस पर न संस्कृत की छाया थी न उर्दू की न बाँग्ला की। आधुनिक हिंदी का विकास भारतेंदु युग की इसी गद्य शैली की नींव पर हुआ है।
भ्रमर गीत किसे कहते हैं?
यह सूर सागर का वह हिस्सा है जिस में वृंदावन की गोपियाँ कृष्ण द्वारा उन्हें समझाने के लिए भेजे गए उद्भव को तरह-तरह के उलाहने देती हैं। इस खंड में सौ से अधिक पद हैं। रामचंद्र शुक्ल ने इन का संकलन 'भ्रमर गीत सार' नाम की किताब में किया है। 'भ्रमर गीत' नाम पड़ने का कारण यह है कि गोपियों ने इनमें से बहुत-से पद भ्रमर को संबोधित करते हुए कहे थे।
यह पहेली किसने बुझाई थी - एक थाल मोतियों से भरा / सब के सिर पर औंधा धरा/ चारों और वह थाली फिरे / मोती उससे एक न गिरे? इसका उत्तर भी बताइए।
यह पहेली अमीर ख़ुसरो (1253-1325) की बनाई हुई है। ख़ुसरो को खड़ीबोली हिंदी का पहला लोकप्रिय कवि माना जाता है। उन्होंने बहुत-सी पहेलियों, मुकरियों, दोहों, गजलों सहित विपुल साहित्य लिखा है। 'काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे' - यह गीत ख़ुसरो ने ही लिखा था।
इस पहेली का उत्तर है - आसमान।
'हिल मिलि जाने तासों मिलि के जनावै हेत / हित को न जाने ताकों हितू न बिसाहिए। / होय मगरूर तापै दूनी मगरूरी कीजे / लघु ह्वै चले जो तासों लघुता निबाहिए। / बोधा कवि नीति को निबेरो यहि भाँति अहै / आपको सराहै ताहि आपहू सराहिए। / दाता कहा, सूर कहा, सुंदर सुजान कहा / आपको न चाहे ताके बाप को न चाहिए।' - यह रचना किस छंद में लिखी गई है? क्या इस छंद का प्रयोग किसी आधुनिक काव्यकृति में भी हुआ है?
इस छंद का नाम कवित्त है। यह वार्णिक छंद है, जिस का प्रयोग हिंदी में कम ही हुआ है। आधुनिक युग में रामधारी सिंह 'दिनकर' ने अपनी काव्य कृति 'कुरुक्षेत्र' में कवित्त छंद का खूब इस्तेमाल किया है।
जेनी वॉन वेस्टफेलेन कौन थी? उस पर हिंदी के किस कवि ने कविता की है?
जेनी जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स की पत्नी थी। उस पर मैथिलीशरण गुप्त ने लघु काव्य लिखा है।

'किसी से न डरना, गुरु से भी नहीं, लोक से भी नहीं... मंत्र से भी नहीं।' यह उक्ति हिंदी के किस उपन्यास से ली गई है? उस के लेखक का नाम बताइए।
'बाणभट्ट की आत्मकथा' से। यह हजारी प्रसाद द्विवेदी का पहला उपन्यास (प्रकाशन वर्ष : 1955) है।
'भागो नहीं दुनिया को बदलो' किस लेखक की रचना है? उनका मूल नाम क्या था?
यह पुस्तक राहुल सांकृत्यायन की है। उनका मूल नाम था, केदारनाथ पांडेय।
जयशंकर 'प्रसाद' ने कितने नाटक लिखे हैं? उन के किस नाटक में स्त्री विमर्श का प्रमुख स्थान है?
'प्रसाद' जी ने कुल सात नाटक लिखे : स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जनमेजय का नाग यज्ञ, राज्यश्री, कामना और एक घूँट। 'ध्रुवस्वामिनी' में स्त्री प्रश्न को गंभीरता से उठाया गया है।
गजानन माधव मुक्तिबोध की कुछ कहानियों का नाम बताइए।
काठ का सपना, क्लॉड ईथर्ली, विपात्र, अँधेरे में, पक्षी और दीपक, ब्रह्मराक्षस का शिष्य आदि।

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लेखकों से निवेदन

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